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Thursday, July 6, 2017

आख़िर क्यो "शादी" ही है, औरतो की ज़िंदगी का सबसे बड़ा सच?

"बहुत बहुत बधाई शुश्रि कोमल नागर को, जिनके कार्यकाल मे हमारे स्टेट ने इतनी एतिहसिक प्रगती की है...अभूतपूर्व साल का कार्यकाल...और संचालक की इसी घोषणा के साथ पूरा हाल तालियों से गूँज उठा! और जैसे ही सुश्री नागर अपना व्यक्त्य्व व्यक्त करने आई, खुशी के आसू आखों मे झिलमिला उठे! "ये सब आपके साथ और सहयोग से ही संभव हुआ है"..स्ंक्षिप्त शब्दो मे उन्होने अपना भाषण समाप्त किया! आज कार की तरफ़ लौटते हुए कोमल कुछ थका हुआ सा महसूस कर रही थी, अनेकानेक उपलब्धियाँ थी उनके नाम, कई सारे अवॉर्ड, प्रशस्ति पत्र....पर...

पर मन बहुत डर रहा था..कई सारे सवाल ज़ेहन को परेशान कर रहे थे! यूँ तो उम्र के ३८ वे बरस मे थी कोमल पर फिर भी जब भी नयी जगह पोस्टिंग होती, इसी तरह परेशान हो जाती थी वो..और परेशानी की वजह भी कोई शासकीय या प्रशासनिक नही थी, वजह थी सामाजिक, यूँ तो एक उच्चधकारी होने से समाज मे उनका रुतबा था, पर फिर भी एक महिला होने के नाते समय-समय पर होता तिरस्कार उसके मन को आहत कर देता था!

"मेडम जी, ये है आपका नया घर, सारी सुख-सुविधाए है, पर फिर भी किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो, बताना.." "ठीक है दिनेश..तुम जाओ" कहकर कोमल ने तुरंत फोन उठाया और सबसे पहले अपनी माँ को कॉल किया और फिर बारी-बारी से अपने छोटे भाई और बहन को भी अपने सकुशल पहुचने की खबर दी..बस इतना ही था कोमल का परिवार. हर बार तो माँ साथ होती थी, पर इस बार खराब तबीयत के चलते कोमल को अकेले ही शिफ्टिंग करनी पड़ी.

.."अरे! पास ही मंदिर है, जाकर भगवान दर्शन कर आती हूँ..नयी शुरुआत के लिए अच्छा रहेगा.."मदिर देख कोमल के मन मे तुरंत विचार आया..पर कुछ ही मिनिटो मे पिछली बार की यादे मन-मस्तिष्क मे कौंध गयी! पिछली बार जो मंदिर मे हुआ था..उसकी कड़वी यादे अभी भी कोमल को समय समय पर परेशान करती रहती थी..

"कोन है ये..." "अरे! बहुत बड़ी अधिकारी है..""और फॅमिली मे कोन-कौन है.." "कुँवारी है..अभी तक शादी नही की, पता नही क्या कारण है.." "कोई अफैयर होगा..या कोई और मामला.." इसी तरह की कई सारी दिल को चुभने वाली बातों को सुनकर वो और माँ बिना देव-दर्शन किए ही घर वापस आ गये थे..इस तरह की औरतो की काना-फूसी को झेलना यूँ तो कोमल की आदत मे था..पर कभी कभी ये कटाक्ष दिल को अंदर से आहत कर देते थे!

असल मे ये पहला या अनोखा वाक़या नही था, हमेशा से ही कोमल को कई सारे सार्वजनिक स्थानो पर इसी तरह हे कटाक्षो का सामना करना पड़ता था, कोई उसे बिचारी कहता..तो कोई उसके चरित्र पर उंगली उठाता..कुछ लोग तो रिश्ते ही बताने लगते और सलाह देते.."अभी देर नही हुई है मेडंजी...बहुत देश की सेवा कर ली, अब अपना घर भी बसा लीजिए!

कभी घुस्सा, कभी चिड़चिड़ाहट, तो कभी घबराहट के साथ कोमल कभी सख्ती से ज़वब देती तो कभी चुप्पी को ही अपना हथियार बना लेती..पर दिल ही दिल अपनी पर्सनल ज़िंदगी पर उठते सवालो से उसके दिल की टीस और गहरी हो जाती!

"बेटा, अब तू भी शादी कर ले, तूने अपनी सारी ज़वाबदारियाँ अच्छे से निभा ली है, समय और सपना भी अपनी अपनी ज़िंदगी मे अच्छे से सेट हो गये है, बस तेरी ही चिंता है मुझे..मेरे बाद तेरा क्या होगा?..हमेशा की तरह चिंता भरे स्वर मे सविता देवी ने कहा!

"आज पापा होते तेरे तो ये दिन नही देखना पड़ता..."कह कर सविता देवी के सब्र का बाँध टूट गया, "क्या माँ..फिर वही बात..." हाँ पापा होते तो..कह कर कोमल का मन पुरानी दर्द भरो यादों मे खो गया!
कितना खुशहाल था उनका जीवन और कितनी अविस्मरणीय थी बचपन की यादें..शहर के जाने-माने डॉक्टर थे कोमल के पापा राम नागर..शहर मे इज़्ज़त थी, प्रतिष्ठा थी, धन-दौलत...प्यार करने वाली पत्नी और तीन बच्चो को प्यारा परिवार! कोमल सबसे बड़ी थी और पापा की लाडली भी..पापा के कई सपने थे कोमल को लेकर..और कोमल की भी हमेशा यही कोशिश रहती की वो पापा के हर सपने को पूरा करें!

"कोमल मुझे तुमसे बहुत उमीदे है..तुम्हे उँचे मुकाम पर देखने का सपना है मेरा.." समय-समय पर पापा की बाते कोमल को आगे बढ़ने को प्रेरित करती रहती, समय और सपना भी बहुत होनहार थे..अच्छे स्कूल और सारी सुख-सुविधाओ के बीच बड़े मज़े से गुज़र रही थी ज़िंदगी..पर एक दिन के हादसे से इस सुंदर परिवार का हर सपना टूट गया..

"सॉरी मेडम जी, इस भयानक सड़क हादसे से डॉक्टर साहब का देहांत हो गया है.."फोन पर आए इस संदेश ने कोमल और उसके परिवार की सारी खुशिया एक पल मे छीन ली थी..माँ को दिल का दोरा आ गया था, इस सदमे से..१८ साल की कम उम्र मे ही परिवार की मुखिया बन गयी थी कोमल...दो छ्होटे भाई-बहन उनकी पढ़ाई, लिखाई, आर्थिक ज़िमेदारियाँ, बीमार माँ..शायद कोमल की ज़िंदगी उससे बड़ा इम्तिहाँ ले रही थी...
"दीदी..कॉलेज की फीस भरनी है, वरना अड्मिशन कॅन्सल हो जाएगा.." सपना का फ़ोन आया ही था की, समय बोला, "दीदी माँ की दवाइयाँ ख्तम हो गयी है.." एक साथ - पार्ट टाइम नौकरी करके कोमल ने परिवार की आर्थिक ज़वाबदारियाँ जैसे-तैसे संभाल तो ली थी, पर रात के अंधेरे मे पापा की तस्वीर लेकर "पापा आप हमे छोड़ कर क्यू चले गये.." कह कर उसके दिल का दर्द आसू के साथ फुट ही जाता था! पर दूसरे ही पल पापा का सपना पूरा करना है..अपनी पढ़ाई भी जारी रखनी है, अओर इसी तरह की हज़ारो ज़वाबदारियों के चलते वो अपने आप को फिर से सभाल लेती और फिर जुट जाती अपने टूटे हुए परिवार को संभालने मे!

इतनी सारी परेशानियो और ज़वाबदारिंयो के बीच कोमल की ज़िंदगी बस एक संघर्ष बन कर रह गयी थी, पर उसने हार नही मानी, कभी अपने परिवार को अपने पापा की कमी का अहसास नही होने दिया, हर ज़िमेदारी अच्छे से निभाई! माँ का इलाज़, भाई-बहन की पढ़ाई, उनकी शादी सब कुछ किया..और फिर मेहनत करके पापा का सपना भी पूरा किया..भले देर-सबेर ही सही पर कोमल ने प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास की, और डिप्टी कलेक्टर की पोस्ट पर उसकी नियुक्ति भी हो गयी!

"माँ, आज पापा का सपना पुरो हो गया..." "हाँ, बेटा..कहकर कोमल को गले लगाकर रो पड़ी थी उस दिन सविता देवी..."

पर ये सब होते=होते और इतनी सारी ज़वाब्दारियाँ निभाते निभाते कोमल को कभी अपनी ज़िंदगी, अपने सपनो के बारे मे सोचने का समय ही नही मिला..काम और परिवार के बीच उलझी १८ साल की कोमल कब ३८ वर्षीय सुश्री कोमल नागर बन गयी थी, इसका अंदाज़ा तो कोमल को खुद भी नही था!

हाँ कभी-कभी अकेलापन तो लगता था, पर फिर भी एक संतुष्टि थी अपनी ज़वाबदारियो को अच्छी तरह से निभाने की, अपने पापा के अधूरे सपनो को पूरा करने की..कोई शिकायत नही थी ज़िंदगी से..काम करते करते इतनी प्रतिष्ठा और सम्मान से पापा को असली श्रधंजलि देने का सुकून था..पर पिछले कुछ वर्षो से इस तरह का कटाक्ष और ताने असहनीय होते जा रहे थे!

"क्या हुआ मेडम जी, मंदिर नही जाना है?"..दिनेश की आवाज़ से कोमल वर्तमान मे गयी, समाज की विसंगतियो से व्व्यथित कोमल ज़िंदगी मे इतना कुछ करने और पाने हे बाद भी सिर्फ़ शादीशुदा होने की वज़ह से इस मानसिक प्रताड़ना को झेल रही थी, उसकी हर उपलब्धि को सलाम करने के बजाय लोगो का इस तरह का व्यवहार आज उसे दुखी कर रहा था!

ये कहानी सिर्फ़ कोमल की ही नही है, हमारे समाज़ मे कोमल की तरह ही कई सारी ऐसी लड़कियाँ है, जो अपनी व्यक्तिगत परिस्थितियो के चलते शादी नही कर पाती, पर ह्मारे समाज़ मे इसे व्यातिगत विषय मानते हुए इसे कटाक्ष का मुद्दा बना दिया जाता है!

 आख़िर क्यो?, हर लड़की के लिए विवाह ही अंतिम मंज़िल है, हाँ नयी ज़िंदगी की शुरुआत सभी के लिए ज़रूरी है, पर यदि किसी वज़ह से किसी के साथ ये संभव नही हो पता है, तो क्यों नही उसका अपना निर्णय मान कर उसे अपनी ज़िंदगी अपनी तरह से ज़ीने की आज़ादी दी जाती है, क्यो उसका हर समय तिरस्कार किया जाता है1  क्यो किसी का भी शादीशुदा होना, और फिर बच्चे होना, यहा तक की लड़की है तो लड़का होना..एक समज़ीक चर्चा का विषय होते है..क्यो ज़िंदगी के अन्य क्षेत्रो मे प्रशांसनीय काम करने के बाद भी कोमल जैसी लड़कियाँ मज़बूर है, इस प्रताड़ना सहने को...

यही है हमारे भारतीय समाज़ का कड़वा सच, क्या है आपका कहना, प्लीज़ सांझा कीजिए!


1 comment:

  1. सही कहा मोना, ये ही हमारे भारतीय समाज की विसंगति है, जहा बचपन से लेकर बुढ़ापे तक सिर्फ़ औरतो को ही कई तरह की कुरीतियों और बन्धनो का सामना करना पड़ता है, यहा तक की कई बार पढ़ी लिखी महिलाए भी इन सब का हिस्सा होती है, पर शायद समय बदलेगा क्योकि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है...

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