घर का सारा
काम ख्तम करके
राधा सौफे पर
लेटी ही थी
और अख़बार हाथ
मे लेते ही
झपकी लग गयी!
आधी नींद मे
कई विचार राधा
के मन मे
उमड़ रहे थे,
"अब बच्चे बड़े हो
चले थे...पातिदेव
उनके काम मे
व्यस्त रहते थे...घर की
ज़वाबदारिया तो ज्यो
की त्यो है..पर अब
उमर ढल चली
है..अब थकान
लगने लगी है
इन ज़वाब्दारियो को
निभाते निभाते.." और अचानक
डोर बेल की
आवाज़ से राधा
वर्तमान मे आ
पहुची, इस समय
कौन होगा?
दरवाज़ा खोलते ही पातिदेव
को असमय देख
कर थोडा चोक
गयी थी वो.
"कितनी देर की
दरवाज़ा खोलने मे, कब
से इंतज़ार कर
रहा हूँ", "सोरी,
थोडा नींद लग
गयी थी", राधा
ने घबराकर कहा!
"मेरी ब्लू फाइल
कहा रखी है?"
राजेश ने कुछ
गुस्से से पूछा!
"आपके ड्रॉवर मे ही
रखी थी", इतना
कहते ही राधा
कुछ डर सहम
कर फाइल खोजने
मे जूट गयी!
यह पहली बार
नही था, जब
राधा का आधा
से ज़्यादा दिन
चीज़ो को खोजने
मे निकल जाता
था
और अफ़सोस की वज़ह
तो ये थी
की वो खुद
तो सारी चीज़े
जगह पर रखती
थी, पर पातिदेव
अकस्र्र चीज़ो को इधर
उधर रख कर
भूल जाते थे,
और फिर सारा
दोष राधा पर
मढ़ देते थे,
"कुछ अकल नही
है, कोई काम
ठीक से नही
करती हो.." ये
सुनते सुनते अब
राधा को उब
सी होने लगी
थी! लगा पलट
कर कह दे,
की आपको ही
ख्याल नही रहता
है", फिर सोचा
अभी ऑफीस से
आए है, इस
तरह बोल कर
मूड खराब करना
ठीक नही है!
और सालो पुरानी
आदत जो थी,
पति और बच्चो
की हर अनकही
बातो को कुछ
ज़रूरत से ज़्यादा
समझने की! आख़िर
फाइल मिल ही
गयी, राजेश जी
बेड के नीचे
रख कर भूल
गये थे!
राधा ने कुछ
राहत की साँस
ली ही थी,
की अचानक फोन
पर राजेश जी
और उनके दोस्त
कमलेश की बात
सुन कर स्तबध
रह गयी, "अरे!
यार आज ऑफीस
मे बास ने
बहुत परेशन किया,
बहुत टेन्षन था,
आज" सुनकर राधा को
फिर से एक
बार समझ आ
गया की, टेन्षन
तो ऑफीस की थी,
इसलिए मुझे इतना भला बुरा कह रहे थे!
कई सालो से राजेश जी
अपने काम की कोई भी tension ya frustation इसी तरह राधा पर निकलते आ रहे थे, पहले राधा
को इतना बुरा नही लगता था, पर आज कल लगता है, "इतनी पढ़ी लिखी होने के बावज़ूद
अपनी ज़िंदगी के इतने साल घर और ब्च्चो की देखभाल मे निकल दिए, यदि दो शबद तारीफ नही
कर सकते तो कम से कम दूसरी बातो का घुस्सा तो मुझ पर निकालना बंद करो",
यही सोचते सोचते शाम
के खाने की तैयारी मे राधा लग गयी, "क्या बनाउ, सबको क्या पसंद आएगा,..."
सोच ही रही थी की रवि स्कूल से आ गया, आते ही बोला, "क्या मम्मी, कैसा संडविच
बनाया था, कोई टेस्ट नही..आज कल आपके हाथ का खाना बिल्कुल अच्छा नही लगता है"..राधा
कुछ कहती, इसके पहले रवि का दोस्त राज़ आ गया, "अरे यार! आज फुटबॉल मॅच हार गये...
बहुत मूड खराब हो गया", इतना सुनते ही राधा समझ गयी, की घुस्सा खाने का नही, मॅच
का था, "पर यदि तुमने मॅच हारा है तो इसमे मेरा क्या दोष है..और यदि खाना ठीक
से नही बन रहा है, तो ठीक से बताओ ये कौन सा तरीका है, अपनी माँ से बात करने का",
कुछ परेशान सी राधा
अपने आप से बात कर ही रही थी, की अवनी ने आकर भी अपनी fruststion माँ पर निकली,असली
वज़ह तो फ्रेंड से हुई लड़ाई थी, पर सारा भला बुरा माँ को कह रही थी! राधा पहले अपने
पति और बच्चो की इस तरह ही बातो को टाल देती थी, पर अब जब खुद की उमर ढल चली है, और
बच्चे भी बड़े हो गये थे, तो इस तरह का व्यवहार उसे अंदर तक चुभ जाता था..लार रहा था,
उससे ही कुछ ग़लती हो गयी, जो उसने कुछ सीमाए नही बनाई, आज अपनी सालो की मेहनत का इस
तरह का रिवॉर्ड उस के मन को अंदर तक दुखी कर गया था"!
यूँ तो ये कहानी काल्पनिक
है, पर कई सारी वास्तविक घटनाओ से प्रेरित होकर लिखी गयी है, हमारे आधुनिक भारतीय समाज़
मे, आज भी पुरुष अपना सारा तनाव अपनी पत्नी पर निकालना मर्दानगी समझ te है, और खास
कर यदि पत्नी घरेलू है, तो उसे हर वकत इस बात का अहसास कराया जाता है, वो किसी लायक
नही है..और वो खुद पैसा कमाकर सबसे बड़ा काम ही नही बल्कि उपकर कर रहे है"...और
सिर्फ़ पातिदेव ही नही, बच्चे भी अपनी घरेलू माँ को सिर्फ़ रुटीन काम करने वाली मशीन
सम्झ कर समय समय पर अनादर करना नही भूलते है!
मेरा इस तरह ही मानसिकता
रखने वाले लोगो से बस एक ही प्रशन है, "जो इंसान आपकी ज़रूरतो, आपकी health का
अच्छे से ध्यान रखने के लिए अपनी सारी खुशियाँ दाँव पर लगा देता है, जिसकी ज़िंदगी
का बस एक ही लक्ष्य होता है ही उसका परिवार खुश रहे...आप उसी इंसान को सब से easy
target समजते हो अपनी सारी frustation निकाल ने का, एक पल के लिए भी ये नही सोचते की
kya महसूस होता होगा, इस तरह का रिवॉर्ड पाकर, आपकी माँ को या पत्नी को"
वही शीशे के दूसरी
तरफ मेरा एक सुझाव भी है, सभी त्यागशिल महिलाओ को,
"कहते है, माँगने
से इज़्ज़्त नही मिलती, वो earn करनी पड़ती है", इसलिए भले ही आप stay at
home mom हो, अपनी boundries बना कर रखिए, यदि आपके पति या बच्चे अकारण ही बात बिना
बात आप पर गुस्सा करते है या आपको much deserving respect नही देते है, तो अपनी आवाज़
उँची करने मे हिचकिचाए नही, उन्हे बताए की यदि वो घर पर है, तो ये उनकी मज़बूरी नही,
बल्कि अपने परिवार के लिए प्यार और care है, अपने विचार, अपनी इच्छाए खुल कर
express करे, किसी को कोई हक नही है, आपके स्वाभिमंन को ठेस पहुचने का, और घुटन से
तो अच्छा है, दो श्बद कह कर अपना बोझ हल्का कर लेना! .
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