आज पायल कुछ
ज़्यादा ही खुश
लग रही थी,
और हो भी
क्यो ना आज
उसकी ज़िंदगी का
सबसे बड़ा दिन
था, आज उसकी
ज़िंदगी की नयी
शुरुआत होने वाली
थी! गुलाबी जोड़ा
पहने और दुल्हन
बनी पायल किसी
अप्सरा से कम
नही लग रही
थी! उसकी खुशी
और घबराहट की
विचार श्रखला को
मामी की आवाज़
ने तोड़ा. "जल्दी
कर पायल बारात
आ गयी है!
"आई मामी...और मामी
को देखते ही
पायल की रुलाई
फुट पड़ी! आज
मा- बाबूजी की
बहुत याद आ
रही थी! पूरे
२० बरस हो
गये उनको गये
को, आज मम्मी
होती तो ये
कहती, आज पापा
होते तो ये
समझाएश देते! यू तो
मामा-मामी भी
अपने ही है,
पर....
और इतना सोचते
ही पुरानी यादे
पायल के मन-
मसतिष्क मे कौंध
गयी! एक विमान
दुर्घटना मे मम्मी-
पापा की अकाल
मौत के बाद
मामा-मामी का
ही साया था,
पायल के सिर
पर! यूँ तो
मामा-मामी दोनो
ही पायल का
ख़याल रखते थे,
पर मामी समय-समय पर
पराएपन का अहसास
करने से नही
चूकती और इतना सोचते ही पुरानी यादे पायल
के मन- मसतिष्क मे कौंध गयी!
"तुझे नये कपड़े
लेने की कोई ज़रूरत नही है, रीता के पुराने कपड़े पहन लेना" या "हम सब बाहर
जा रहे है, तू घर का सब काम करके रखना" जैसी कई छोटी-बड़ी बातो को सुनकर पायल
का बचपन बिता था, पर उसने कभी इन बात को दिल पर नही लिया, हमेशा यही सोच रखी, की ये
मेरे बड़े है, मेरे भले के लिए ही कह रह रहे है! और कई समझोते करते करते ज़िंदगी के
सबसे अहम फेसले का दिन भी आ ही गया!
मामी की बेटी रीता की शादी के साथ ही मामी ने ये
एलान कर दिया था की भले ही तू अभी १८ बरस की है, पर मे और तेरे मामा अपनी ज़वाबदारियो
से मुक्त होना चाहते है, तेरे लिए मेरे रिश्ते मे ही एक लड़का भी देख लिया है! बस तू
हाँ कर दे, तो हम खुश हो जाए!
मामी का हुकुम सर आँखो
पर, "हाँ मामी आप जैसा कहोगे, मे वैसा ही करूँगी! पायल ने हामी भरते हुए सोचा,
मेरे बड़े है, मेरा भला ही सोचेगे, और जलद ही अपने होने वाले पति और ससुराल को ठीक
से जाने बिना उसने शादी के लिए हाँ कह दी! दिन निकलते गये...और देखते ही देखते शादी
का शुभ दिन भी आ ही गया!
"क्या सोच रही
है पायल...." रीता दीदी की आवाज़ सुन कर पायल वर्तमान मे आ पहुची, "कुछ नही
दीदी, बस कुछ पुरानी बाते याद आ गयी थी", "ज़ल्दी कर, विवाह का शुभ मुहूर्त
आ गया है"! दीदी के कहते ही पायल मंडप मे जा पहुँची!
ज़लद ही सारी रस्मो
को पूरा कर..घबराहट और हज़ारो सपने सजोए पायल अपने ससुराल आ गयी! बिदाई के समय मामी
के कहे शब्द "हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की है, फिर भी कोई परेशानी हो तो सहन
करना, ससुराल मे तो ऐसा होता ही है, हमे परेशन मत करना" पायल के कानो मे गूँज
रहे थे, मम्मी-पापा की याद मे रोना रुक ही नही रहा था, लग रहा था सारी दुनिया मे अकेली
हो गयी है...पर कुछ देर मे ही विवेक की आवाज़ सुन कर लगा..नही अब तो मुझे मेरे ज़ीवन
साथी मिल गये है,वो मेरा हर सुख-दुख मे साथ देंगे,अब मे कभी ;अकेलापन महसूस नही करूँगी,
पर शायद विधि के विधान को कोई नही समझ सकता! "पायल. मुझे ज़रूरी काम से बाहर जाना
है, तुम आराम करो" विवाह की पहली रात ही विवेक का इस तरह से बाहर जाना पायल को
अच्छा तो नही लगा था, फिर सोचा कुछ ज़रूरी काम होगा!
अगली सुबह से ही सासू
जी का व्यवहार भी उखड़ा-उखड़ा लगा! " हमे तो कई जगह से अच्छे-अच्छे रिश्ते मिल
रहे थे, पर तुम्हारी मामी ने तुमहरे ससुरजी पर जो दबाव बनाया, मे कुछ कह ही नही पाई!
और इसके साथ ही पायल को लग शायद वो विवेक और उसकी माताजी को पसंद नही है, फिर भी उसने
मन छोटा नही किया, सोचा कुछ दीनो mai अपने अच्छे व्यवहार और काम से वो सबका मन जीत
लेगी!
सुबह
से शाम तक घर का सारा काम दिल जान लगाकर करती. पर सासू जी का मन कभी खुश नही होता!
"ये नही सिखाया तेरी मामी ने..." "कोई काम ठीक से नही करती है"
जैसे ताने उसकी आम ज़िंदगी का हिस्सा बन गये थे, मन ही मन बहुत घुटन होती, सोचती विवेक
से अपनापन और प्यार मिलेगा तो सारा दर्द ख़तम हो जाएगा पर विवेक की ज़िंदगी मे तो उसकी
कोई जगह थी ही नही!
एक
दिन विवेक के पर्स से किसी लड़की की फोटो अचानक गिरी..और पायल ने यूँ ही पूछ लिया
....ये कौन है?और विवेक ने कुछ ही देर मे सारे राज़ खोल दिए... ये आरज़ू है, इस शहर के सबसे बड़े बिजनेसमैन
की बेटी है" हम दोनो एक दूसरे से बहुत प्यार करते है...बस तुमसे च्छुटकारा चाहिए...परिवारिक
दबाव मे आकर तुमसे शादी की...
इतना
सुनते ही पायल के पैरो के नीचे की ज़मीन खिसक गयी! लगा अब ज़िंदगी मे कुछ नही बचा..पर
अपने अंदर पनपती नन्ही जान के बारे मे सोच कर खामोश हो गयी! राखी आई, सोचा मामा-मामी
को अपने दिल का हाल बातयगी, वो कुछ रास्ता दिखाएगे, एक दो बार कोशिश भी की, पर मामी
ने सुन कर भी अनसुना कर दिया!
इसी
तरह सब कुछ झेलते-झेलते डेलीवेरी का टाइम भी आ ही गया! अपनी चाँद सी बेटी शकल देखेते
ही वो सारा दुख भूल गयी, लगा अब ज़िने का सहारा मिल गया है! भले ही दुनिया मेरा साथ
न दे, मे अब अपनी बेटी के सहारे जी लूँगी! पर होनी को कुछ और ही मंज़ूर था...लड़की
के पैदा होने पर सासू जी का पारा सातवे आसमाँ पर था! पहले की नापसन्ड़गी अब नफ़रत मे
बदल गयी थी! दिन रात ताने-उलने...कभी कभी तो मार-पीट! ससुरजी कभी बीच बचाव करने आते
भी तो उनको दो-चार बाते सुनाकर चुप करा देती, और विवेक के लिए तो अपनी बेटी और बीवी
का होना या ना होना कुछ मायने ही नही रखता था!
ज़िंदगी मे अज़ीब सी
घुटन महसूस होती...तरह तरह के विचार आते..लग रहा था अब सहन नही होता..और एक दिन तो
हद ही हो गयी..घुस्से मे सासू जी ने गरम चिमटे से हाथ जला दिया! इस बार पायल का द्धेर्य
टूट गया..बस अब मुझ से सहन नही होगा! रीति हुई मामा-मामी के पास पहुची...सारी कहानी
कह सुनाई और बोली, बस...मामी अब मे ज़ी नही सकुगी..आप ये रिश्ता ख़तम कर दो..पुलिस
की मदद लो..कुछ भी करो!
पर मामी को तो अपनी
सामाजिक प्रतिष्ठा की ही चिंता थी! "खबरदार जो किसी को कुछ बताया तो....तूने ही
कुछ ग़लत किया होगा...और पुलिस का तो नाम भी मत लेना..हमारी सारी इज़्ज़त मिट्टी मे
मिल जाएगी! बचपन से तुझे पाला-पोसा, हमारी इज़्ज़त का कुछ तो ख्याल कर!
सारी बात सुन कर पायल
वापस आ गयी..अपनी नन्ही परी को देखकर एक बार फिर कोशिश की..लगा मामी सही कह रही है,
मुझे किसी को कुछ नही बताना चाहिए..पर रोज़-रोज़ होती शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना
से एक दिन पायल हार गयी..आज सासू जी ने पूरे शरीर पर बेल्ट से घाव कर दिए थे..कोई नही
था, जिससे अपने मन की बात कह पाती..मामी की बाते कानो मे गूँज रही थी..किसी की मदद
की चाह को मामी के शब्दो ने पूरी तरह रौंद दिया था..कुछ देर परी को देखती रही, सोचा
ये मेरे बिना कैसे जी पाएगी...पर आज बचपन से सहा दर्द सारी हदें पर कर गया...दुपट्टे
का फंडा बनाकर वो दुनिया को अलविदा कह गयी...और फिर एक मासूम लड़की परिवारिक हिंसा
की बलि चढ़ गयी!
"ये कहानी एक
वास्तविक घटना से प्रेरित होकर लिखी गयी है...कहने को हम २१ सेंचुरी मे जी रहे है और
हर दिन स्त्री शिक्षा और समानता की बात करते है, पर आज भी दहेज, सत्री भ्रूण हत्या
और इस तरह ही घरेलू हिंसा, परिवारिक दबाव के चलते हज़ारो लड़किया असमय ही मौत को गले
लगा लेती है, निश्चित ही अत्यंत दुखद पर कटु स्तय है, ये हमारे तथाकथित आधुनिक समाज़
का...
What are your
thoughts? Did you had observed any cases of domestic violence in our society?
Please share!
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