Friday, July 21, 2017

कोख किराए से...

"क्या हुआ माँ?...बहुत थक गयी हो शायद..." सोहन ने काम पर से लौटी अपनी माँ राधा से पुछा! "हाँ, बेटा..आज तो शर्मा जी के यहा बहुत मेहमान थे, दूसरी जगह भी बहुत काम था...बस एक कप चाय पीला दे, अभी ठीक हो जायूंगी..! राधा ने किसी तरह अपने बेटे को तो समझा दिया, पर वो जानती थी, की इतने सालो से ये काम करके अब वो थक चली है, हर दिन इतनी सारी मेहनत करने के बाद बस इतना ही पैसा आता था, की जैसे तैसे घर का खर्चा चलता था,...बचपन से यही संघर्ष देखा था, राधा ने...!

परिवार मे बहने थी, और विधवा माँ..यूँ तो माँ की भी बहुत इच्छा थी, की उनकी बेटियाँ पढ़े, जो उनके साथ हुआ हो उनकी बेटियों के साथ हो, पर आर्थिक तंगी के चलते ये कभी हो नही पाया..राधा को भी कम उम्र से ही माँ का हाथ बटाने लोगो के घर जाना पड़ता..झाड़ू-पोछा, कपड़ा-बर्तन...करते करते जैसे तैसे माँ ने अपनी ज़वाबदारिया पूरी की, और अपनी ज़वाबदारियाँ पूरी होते ही माँ का देहांत हो गया!

 "माँ, तुम्हारे बिना ज़िंदगी बहुत मुश्किल है..."आज भी याद है राधा को माँ के जाने के गम ने किस तरह तोड़ दिया था उसे, और दुख इसलिए भी ज़्यादा था, क्योकि सभी बहनो मे राधा ही सब से ज़्यादा करीब थी माँ के..यूँ तो माँ के बड़े सपने थे राधा को लेकर पर असल मे ऐसा कुछ हुआ नही था, राधा की ज़िंदगी मे...शादी की तो पति शराबी निकाला, कम उम्र मे बच्चो की माँ बन गयी थी वो..कभी अपना दुख-दर्द यूँ तो माँ को बताती नही थी, पर माँ की बाते उसे हमेशा हर परिस्थिति से लड़ने की हिम्मत देती थी!

"क्या हुआ माँ..ये लो चाय" सोहन की आवाज़ से वर्तमान मे गयी थी वो..."कुछ नही बेटा, बस आज तो नानी की याद गयी.."कह कर राधा की आँखे झलझला गयी! माँ के जाने के बाद ज़िंदगी का संघर्ष और भी बढ़ गया था, बहुत समझती अपने पति को...कुछ काम करे, शराब पिए, पर कुछ असर नही होता था उस पर, पिछले कुछ महीनो से तो घर का रूख़ भी नही किया था उसने!

अपनी .माँ की तरह लोगो के घर काम करके किसी तरह घर का खर्चा तो चल रहा था, पर बच्चो की पढ़ाई, उनकी फीस...बस एक ही लक्ष्य था, किसी भी तरह बच्चो को अच्छे से पढ़ाना है, उन्हे काबिल बनाना है, ताकि उन्हे अच्छी ज़िंदगी नसीब हो, उन्हे ये दिन ना देखने पड़े...पर अभी तो कोई राह मिलती दिखती नही थी!

"माँ, कल स्कूल की फीस का आखरी दिन है..." सोनिया ने स्कूल से आते ही कहा! "हाँ, बेटा करती हूँ इंतज़ाम..." सोचा शर्मा मेडम से अड्वान्स ले लूँगी! मेडम जी ने कुछ पैसे दिए तो पर साथ ही हिदायत भी दे डाली.."अबकी बार दे रही हूँ, पर अगली बार से ये सब नही चलेगा"..मेडम जी के कड़े शबद घर आने के बाद भी राधा के कानो मे गूंजते रहे! कुछ दिन बीते ही थे की रवि को भयकर चेस्ट इन्फेक्षन हो गया था, इस बार इलाज़ का खर्च...!

बढ़ती परेशानियो से अंदर ही अंदर टूटती जा रही थी, राधा! ना कोई मदद..ना कोई सहारा..थी तो बस एक उम्मीद अपने बच्चो को अच्छे से बड़ा करने की...उनका भविष्य सँवारने की! दिन रात इसी चिंता मे जिए जा रही थी वो, की...एक दिन कुछ चमत्कार सा हुआ...राधा अचानक ढेर सारा सामान, कपड़े, मिठाई, फल, बीमार बच्चे की दवाइयाँ लेकर घर पहुँची..हालाँकि मन अंदर से डरा हुआ था, पर चेहरे पर आत्म-विश्वास की झलक थी!

पता नही था, बच्चे खुश होंगे? या सवाल करेंगे? "अरे! माँ इतना सारा सामान..." क्या नया काम मिला है, तीनो बच्चो ने एक साथ पूछा? "हाँ ऐसा ही समझो..." राधा ने कहा! " कल स्कूल जाकर तुम्हारी फीस भर देती हूँ, और ज़रूरत हो तो tuition भी शुरू कर देते है...राधा का उत्साह अपनी चरम सीमा पर था

, "अच्छा, माँ.." रवि और सोनिया ने तो हाँ भरी, पर सोहन जो की उम्र मे सब से बड़ा था वो ये सब बाते आसानी से पचा नही पा रहा था..एक साथ इतना पैसा, ज़रूर माँ कुछ छुपा रही है, कही कुछ ग़लत...नही नही ऐसा कभी हो सकता, माँ ऐसा कुछ कर ही नही सकती, उस समय तो सोहन ने अपने आप को समझा लिया..पर अंदर ही अंदर संदेह का कीड़ा उसे हर दिन परेशान करता रहता था..सोच रहा था, एक दिन मौका देख कर माँ से सब कुछ पूछूँगा!

ज़िंदगी बदल रही थी, सब कुछ ठीक हो रहा था, पैसो की आवक से बच्चो की पढ़ाई, कपड़े सब को स्तर बदल गया था..और ये सब हुए अभी महीना भी नही हुआ था, की आस-पास के लोगो को राधा और उसके बच्चो की खुशी खलने लगी थी, और बात-बेबात हर कोई उस पर ताने कसने लगना था!

"क्या बात है राधा, कौन सा नया काम मिल गया है, हमे भी बता, तेरी तो रौनक ही बदल गयी है,..."साथ मे काम करने वाली गौरी कुछ अलग ही स्वर मे बोली! राधा उसे कुछ बताती, उसके पहले ही कुछ लोगो की बाते तो हदे ही पार करने लगी! "कही कुछ ग़लत तो नही कर रही तू..." पड़ोस की सुषमा ताई बोली! "इतना पैसा एक साथ..."

और इसी तरह ही कई सारी बातों ने राधा के घर मे तनाव घोल दिया था, सोहन जो पहले से ही कुछ परेशान था, ये सब देख कर राधा से कटा-कटा रहने लगा! और इन्ही परिस्थितियों के चलते एक दिन तो हद ही हो गयी...जन्माष्टमी का त्योहार आया..मोहल्ले मे जशन का माहौल था, राधा और उसके बच्चे भी इस मे शामिल हुए और मौका देखते ही सुषमा ताई ने राधा को केंद्र बना कर फिर वही बाते पूरे मोहल्ले वालो के सामने कही, "राधा, आज तो तुझे तेरे नये काम के बारे मे बताना ही होगा..बता करती क्या है तू..."

 सारे लोगो का ध्यान सुषमा ताई के तीखे शब्दो की तरफ चला गया..और साथ ही सोहन भी बोला.."हाँ माँ, मे भी आज सारी सच्चाई जानना चाहता हूँ"! सोहन के शबद सुन कर राधा बोली, "मे कोई ग़लत काम नही कर रही हूँ, मे तो खुद ही आप सबको अपने काम के बारे मे बताना चाहती थी, पर समझ नही आ रहा था, कैसे कहूँ!" पर आज कान्हा जी ने खुद ही आकर मुझे रास्ता दिखा दिया है, आज राधा की आवाज़ मे ग़ज़ब का आत्म-विश्वास था...!

आप सब को पता ही है ना, कान्हा जी की दो माए थी, देवकी और यशोदा..पैदा उन्हे देवकी ने किया था और पाला यशोदा ने, यशोदा जी के मातरत्व मे कोई कमी नही थी, भले ही उन्होने कान्हा जी को जनम नही दिया था, आज हमारे समाज मे भी ऐसी कई महिलाए है, जो किसी कारणवश माँ नही बन सकती, समाज उन्हे बांझ कहता है, और उनका मन हर पल बच्चे के लिए, मातरत्व के लिए तरसता है, आज विज्ञान ने बड़ी उन्नति कर ली है, वैज्ञानिक प्रकिया के ज़रिए ये महिलाए भी माँ बन सकती है, बस उन्हे ज़रूरत होती है, किसी दूसरी महिला की मदद की, उसकी कोख की, जहाँ उनकी आने वाली संतान पनप सके...इसे "सरोगेसी" कहते है, हाँ, मेने अपनी कोख किराए पर दी है...एक माँ बनने की खुशी को तरसती महिला की मदद के लिए...और साथ ही अपने बच्चो की खुशी और बेहतर भविष्य के लिए!

राधा लगातार बोले जा रही थी, और आस-पास खड़े लोग हक्के-बक्के होकर उसकी बात सुने जा रहे थे! "पर मां, आप को ये सब कैसे पता चला...सोहन ने पूछा?

"बेटा, शहर की सबसे बड़ी gynecologist डॉकटर पटेल ने ये मुहिम चलाई है, जिसके दवारा वो बांझ महिलाओ और आर्थिक रूप से कमज़ोर औरतो के के बीच कड़ी बन कर दोनो की मदद करना चाहती है, मेरी तरह और कई औरते भी इस पुण्य काम को कर के अपने परिवार और बच्चो के सपने पूरे कर रही है..और मुझे गर्व है की मे इस मुहिम का हिस्सा हूँ!

मोहल्ले के सारे लोग राधा की बाते सुनकर सन्न रह गये...आज सभी को अपने अपने जवाब मिल गये थे..यूँ तो ज़माने के दस्तूर के हिसाब से कोई राधा की तारीफ कर रहा था, तो कोई उसकी बुराई...!पर सोहन, रवि और सोनिया  ने भाग कर अपनी माँ को गले लगाया..आज राधा को भी तसल्ली हो गयी थी की उसके बच्चे उसके साथ है, अब उसे ज़माने की कोई परवाह नही है!


"यूँ तो आज भी हमारे समाज मे सरोगेसी सर्व प्रचलित नही है, और कई सारे लोग अभी इसे लेकर सन्देहित रहते है, पर गुजरात के आनंद मे डॉक्टर पटेल ( जो की एशिया की जानी-मानी gynecologist है) सचमुच ये मुहिम चलाकर दो पक्षो की महिलाओ की मदद कर रही है, उनके इस प्रयास से कई बांझ महिलाए माँ बनने का सुख उठा पा रही है, और कई ग़रीब महिलाए अपने परिवार को आर्थिक संबल दे पा रही है, मेरा शत-शत नमन है, उन्हे! आपका क्या ख्याल है, प्लीज़ सांझा कीजिए!

Thursday, July 13, 2017

माँ मुझे भी जीना है..."अनसुनी चीख"- A Real Story

"सारिका आज याद है, ना शाम बजे डॉक्टर की appointment है, टाइम पर तैयार हो जाना", कवितदेवी ने आदेश भरे स्वर मे अपनी बहू सारिका को कहा! "ठीक है, मम्मीजी..." कह कर सारिका के दिल की धड़कन और भी तेज़ हो गयी, क्योकि ये पहला मौका नही था, जब डॉक्टर और क्लिनिक के नाम से उसकी चिंता और घबराहट बढ़ गयी थी, ये डर पिछले कुछ सप्ताहो से चल ही रहा था, जब से प्रेग्नेन्सी रिपोर्ट पॉज़िटिव आई थी!

  यूँ तो कहने को और लोगो के लिए ये सारिका की दूसरी प्रेग्नेन्सी थी, पर असल मे सारिका और उसकी फॅमिली वाले ही ये जानते थे, की रिंकी के जनम के बाद ये चौथा मौका था, जब सारिका प्रेग्नेंट थी...!

"मम्मी क्या हुआ...क्या इस बार हॉस्पिटल से मेरा भाई आने वाला है..रिंकी ने मासूमियत से पूछा? "पता नही बेटा...बस इतना ही कह पाई, सारिका अपनी प्यारी बिटिया से..! अपने अंदर पनपती नन्ही ज़ान की अहसास ने सारिका को खुश करने के बजय दुखी और चिंतित कर दिया था, सारिका को और ऐसा होता भी क्यो ना, पिछली बार के हादसो को कैसी भूल सकती थी, वो...यही सोच कर वो पुरानी यादो मे खो गयी!

 दो साल पहले की ही तो बात है, जब एक सुबह बड़े उत्साह से वो अपनी सास के पास आई थी, और बोली थी "मम्मीजी आज रिपोर्ट पॉज़िटिव आई है", कितने खुश थे वो और सचिन! "अब रिंकी को अकेलापन नही लगेगा..जलद ही प्यारा भाई या बहन उसे मिल जाएगा! फिर से माँ बनने की खुशी ने नया उत्साह भर दिया था, सारिका मे!

"भाई या बहन नही सिर्फ़ भाई..." "अरे मम्मीजी ये आप कैसे कह सकती है, ये तो भगवान के हाथ मे है और वैसे भी हम २१ वी सदी मे जी रहे है, क्या फ़र्क पड़ता है, लड़का हो या लड़की?" सारिका ने ऐसे ही कहा! "अपना ये भाषण अपने कॉलेज मे ही देना, इस घर मे वो ही होता है, जो मेरा आदेश होता है" कह कर कविता देवी अपने कमरे मे चली गयी! सारिका डर सी गयी थी, इस तरह की बाते सुन कर

यूँ तो सारिका जानती थी, की मम्मीजी और उनकी सारी फ्रेंडस अपनी फॅमिली मे पोता हो ऐसा ही चाहती थी, और रिंकी के पैदा होने पर भी वो ज़्यादा खुश नही थी, पर उन्होने अपनी नाराज़गी कभी इस तरह नही दिखाई थी, पर आज दूसरी प्रेग्नेन्सी रिपोर्ट के पॉज़िटिव आने पर इस तरह का रूख़...उसने आशा भरी नज़रो से सचिन और अपने ससुरजी की तरफ़ देखा और पूछा, "मम्मीजी, ऐसा क्यो कह रही है, क्या वज़ह है इसकी?"

"इस परिवार की यही परंपरा है, संध्या और उषा भाभी के साथ भी यही हुआ था.." सचिन ने कहा! "कैसा हुआ था...सब कुछ जानना चाहती थी, सारिका..पर सचिन और पापा जी बिना कुछ बताए ही कमरे से बाहर चले गये

"समय आने पर सब पता चल जाएगा" यही थे सचिन के आखरी शब्द! कुछ परेशान, कुछ घबराई सी सारिका दूसरी बार माँ बनने की खुशी ठीक तरह से माना भी नही पाई थी..और पहले तीन महीनो की सारी तकलीफे झेलते हुए जैसे ही १२ सप्ताह पूरे हुए, घर मे एक शाम अजीब सा टेन्षन वाला माहौल हुआ!

"मेरी बात हो गयी है सतीश से, आज शाम क्लिनिक मे और कोई नही है, सारा काम एक ही सिटिंग मे कर देगा" कवितदेवी यही बात दबे स्वर मे सचिन को और अपने पति को कह रही थी! यूँ तो सारिका जानती थी, की सतीश जी मम्मीजी के दूर के रिश्ते के भाई और पेशे से gynecologist थे, पर आज एक सिटिंग मे वो क्या करने वाले थे, सारिका सब कुछ जानना चाहती थी, पर कोई नही था, जो उसे सब कुछ बताता कवितदेवी के आदेश पर वो तैयार होकर सतीश जी के क्लिनिक पर पहुचि, साथ मे सिर्फ़ कवितदेवी थी! क्लिनिक मे और कोई नही था, बस सतीश जी और उनकी फ्रेंड radiologist डॉक्टर रंजना, दोनो ने मिल कर उसकी रुटीन सोनोग्राफी की, कुछ संदेहास्पद था, क्लिनिक का माहौल, सारिका का डर बढ़ता जा रहा था!

"आप बाहर वेट करो...मे कविता दीदी से अकेले मे कुछ बात करना चाहता हूँ" डॉक्टर सतीश ने कहा! "ठीक है..." सारिका को लगा शायद रिपोर्ट मे कुछ प्राब्लम है, उसे टेन्षन ना हो, इसलिए डॉक्टर सतीश मम्मी जी से अकेले मे बात करना चाहते है! पर असल मे बात कुछ और ही थी, "सॉरी दीदी, its again a girl child" डॉक्टर सतीश ने कविता देवी को अकेले मे कहा!

"अच्छा, तो तुम्हे पता ही है,..आगे क्या करना है?" "ओके दीदी.. कह कर डॉक्टर सतीश ने आँखो ही आँखो मे नर्स को कुछ instruction दिए, और नर्स ने सब कुछ समझ कर बाहर आकर सारिका को स्ट्रेचर पर लेटने को कहा! "क्या हुआ है मुझे, क्या रिपोर्ट ठीक नही है, सारिका कुछ ठीक से समझती उसके पहले ही नर्स ने अनास्तेसिया देकर सारिका को बेहोश कर दिया, सारिका के आखों के आगे अंधेरा छा गया, और फिर वही हुआ जो हमारे देश मे हज़ारो लड़कियों के साथ होता है, एक माँ के अंदर पनपती नन्ही जान को कुछ ही मिंटो मे बेज़ान कर दिया गया!

"दीदी. everything had done.." डॉक्टर सतीश ने बाहर आकर कविता देवी को कहा! "बस अब आपको सारिका को समझाना होगा" डॉक्टर सतीश ने अपनी चिंता जाहिर की!

"वो खुद ही समझ जाएगी, ये पहली बार तो नही हुआ है, हमारे परिवार मे, बड़ी दोनो बहुए भी अपने आप ही समझ गयी थी..." कविता देवी ने आतमविश्वास से कहाँ! "मेरा बच्चा...कह कर चीख पड़ी सारिका"! होश आते ही होश खो दिया था, सारिका ने...! आखे खुली तो संध्या और उषा भाभी आश्वासन दे रही थी!

"घबरा मत सारिका..ये हमारे साथ भी हुआ था...हाँ दर्द तो बहुत होता है...पर जैसे ही रिपोर्ट मे लड़का दिखेगा, सारा दर्द ख्तम हो जाएगा..मम्मीजी को इस परिवार मे दो बेटियाँ चाहिए ही नही..." दोनो भाभियों ने अपनी आप बीती कह सुनाई! सारिका के पेरो के नीचे की ज़मीन खिसक गयी थी ये सब सुन कर! लगा आज अभी इस परिवार को छोड़ कर बग़ावत कर दे..इस अन्याय को यही ख्तम कर दे...पुलिस को सब कुछ बता दे...पर अपने बूढ़े माँ-पापा की इज़्ज़त और सचींकी बे रूखी ने उसकी हिम्मत तोड़ दी, लगा शायद अब मुझे भी ये परीक्षा बार-बार देनी होगी! 

अगले कुछ महीनो बाद ये हादसा फिर दोहराया गया! बार-बार होते अबॉर्षन से टूट गयी थी सारिका शारीरिक और मानसिक रूप से...खून की कमी और severe weakness से सारिका का मन काँप जाता था, प्रेग्नेन्सी के नाम से पर फिर भी परिवारिक दवाबो के चलते कुछ नही कर पाई वो..हर कुछ सहती गयी...

"क्या हुआ सारिका?..." इस बार सचिन की आवाज़ से वर्तमान मे लौट आई सारिका..फिर वो ही सब कुछ होगा...वही डर..वही घबराहट...वही तनाव....आज फिर भारी मन से हॉस्पिटल पहुँची सारिका!
हर बार की तरह सोनोग्राफी हुई..नन्ही सी जान...नन्ही सी धड़कन..छोटे-छोटे हाथ-पैर...और “again it’s a girl child”

इस बार लगा, ये नन्ही सी ज़ान अंदर से कह रही हो..."माँ, मुझे भी जीना है, मुझे भी इस दुनिया मे आना है...मुझे भी हक दो अपने हिस्से की ज़िंदगी..." पर बेबस सारिका कुछ नही कह पाई, कुछ नही कर पाई....एक खामोशी...वही सन्नाटा....वही अंधेरा...और "अलविदा माँ"..की अंदरूनी आवाज़ ने फिर एक अज़न्मी ज़िंदगी को पैदा होने से पहले ही ख्तम कर दिया....!


असल मे ये कहानी एक वास्तविक घटना से प्रेरित होकर लिखी गयी है..यूँ तो कहने को हम २१ वी सदी मे जी रहे है..फिर भी स्त्री भ्रूण हत्या हमारे समाज़ का कड़वा सच है...आज भी हमारे देश मे हज़ारो लड़कियाँ जनम लेने से पहले ही मार दी जाती है..और अफ़सोस की बात तो ये है, इस तरह की घटनाओ मे मुख्य रूप से दूसरी महिलाओ का ही हाथ होता है, एक महिला ही दूसरी महिला की दुश्मन बन जाती है लड़को की चाह मे....बेहद अफ़सोसजनक और दुखद है इस तरह की घटनाए...क्या है आपका विचार, प्लीज़ सांझा कीजिए!